चाणक्य नीति चोथा अध्याय | Chanakya Niti Fourth Chapter

चाणक्य नीति चोथा अध्याय

Chanakya Niti Fourth Chapter

1.
आयुः कर्म च वित्तञ्च विद्या निधनमेव च ।
पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ।।१।।
अर्थ: - व्यक्ति कितने साल जियेगा, वह क्या करेगा, कितना धन और ज्ञान अर्जित करेगा और मौत कब होगी। ये पांचो बाते तब ही तय हो जाती है जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है।
2.
साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रामित्राणि बान्धवाः ।
ये च तैः सह गन्तारस्तध्दर्मात्सुकृतं कुलम् ।।२।।
अर्थ: - पुत्र , मित्र, सगे सम्बन्धी साधुओं को देखकर दूर भागते है, लेकिन जो लोग साधुओं का अनुशरण करते है उनमे भक्ति जागृत होती है और उनके उस पुण्य से उनका सारा कुल धन्य हो जाता है।
3.
दर्शनाध्यानसंस्पर्शैर्मत्सी कूर्मी च पक्षिणी ।
शिशुपालयते नित्यं तथा सज्जनसड्गतिः ।।३।।
अर्थ: - जैसे मछली दृष्टी से, कछुआ ध्यान देकर और पंछी स्पर्श करके अपने बच्चो को पालते है, वैसे ही संतजन पुरुषों की संगती, मनुष्य का पालन पोषण करती है।
4.
यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः ।
तावदात्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यति।।४।।
अर्थ: - जब आपका शरीर स्वस्थ है और आपके नियंत्रण में है उसी समय आत्मसाक्षात्कार का उपाय कर लेना चाहिए क्योंकि मृत्यु हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता है।
5.
कामधेनुगुण विद्या ह्यकाले फलदायिनी ।
प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम् ।।५।।
अर्थ: - विद्या अर्जन करना एक कामधेनु के समान है जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है। यह विदेश में माता के समान रक्षक एवं हितकारी होती है। इसीलिए विद्या को एक गुप्त धन कहा जाता है।
6.
एकोऽपि गुणवान् पुत्रो निर्गुणैश्च शतैर्वरः ।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्त्रशः ।।६।।
अर्थ: - सैकड़ों गुणरहित पुत्रों से अच्छा एक गुणी पुत्र है क्योंकि एक चन्द्रमा ही रात्रि के अन्धकार को भगाता है, असंख्य तारे यह काम नहीं करते।
7.
मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः ।
मृतः स चाऽल्पदुःखाय यावज्जीवं जडोदहेत् ।।७।।
अर्थ: - एक ऐसा बालक जो जन्मते वक़्त मृत था, एक मुर्ख दीर्घायु बालक से बेहतर है। पहला बालक तो एक क्षण के लिए दुःख देता है, दूसरा बालक उसके माँ बाप को जिंदगी भर दुःख की अग्नि में जलाता है।
8.
कुग्रामवासः कुलहीनसेवा ।
कुभोजनं क्रोधमुखी च भार्या ।।
पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या ।
विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम् ।।८।।
अर्थ: - निम्नलिखित बाते व्यक्ति को बिना आग के ही जलाती है: -
1. एक छोटे गाव में बसना जहा रहने की सुविधाए उपलब्ध नहीं
2. एक ऐसे व्यक्ति के यहाँ नौकरी करना जो नीच कुल में पैदा हुआ है
3. अस्वास्थय्वर्धक भोजन का सेवन करना
4. जिसकी पत्नी हरदम गुस्से में होती है
5. जिसको मुर्ख पुत्र है
6. जिसकी पुत्री विधवा हो गयी है।
9.
किं तया क्रियते धेन्वा या न दोग्ध्री न गर्भिणी ।
कोऽर्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वान्न भक्तिमान् ।।९।।
अर्थ: - वह गाय किस काम की जो ना तो दूध देती है ना तो बच्चे को जन्म देती है. उसी प्रकार उस बच्चे का जन्म किस काम का जो ना ही विद्वान हुआ ना ही भगवान् का भक्त हुआ।
10.
संसारतापदग्धानां त्रयो विश्रान्तेहेतवः ।
अपत्यं च कलत्रं च सतां सड्गतिरेव च ।।१०।।
अर्थ: - जब व्यक्ति जीवन के दुःख से झुलसता है उसे निम्नलिखित ही सहारा देते है: -
1. पुत्र और पुत्री
2. पत्नी
3. भगवान् के भक्त।
11.
सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति पण्डिताः ।
सकृत्कन्याः प्रदीयन्ते त्रीण्येतानि सकृत्सकृत् ।।११।।
अर्थ: - यह बाते एक बार ही होनी चाहिए: -
1. राजा का बोलना
2. बिद्वान व्यक्ति का बोलना
3. लड़की का ब्याहना।
12.
एकाकिना तपो द्वाभ्यां पठनं गायनं त्रिभिः ।
चतुर्भिर्गमनं क्षेत्रं पंचभिर्बहुभी रणम् ।।१२।।
अर्थ: - जब आप तप करते है तो अकेले करे, अभ्यास करते है तो दुसरे के साथ करे, गायन करते है तो तीन लोग करे, कृषि चार लोग करे, युद्ध अनेक लोग मिलकर करे।
13.
सा भार्या या शुचिर्दक्षा सा भार्या या पतिव्रता ।
सा भार्या या पतिप्रीता साभार्या सत्यवादिनो ।।१३।।
अर्थ: - वही अच्छी पत्नी है जो शुचिपूर्ण है, पारंगत है, शुद्ध है, पति को प्रसन्न करने वाली है और सत्यवादी है।
14.
अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शुन्यास्त्वबांधवाः ।
मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता ।।१४।।
अर्थ: - जिस व्यक्ति के पुत्र नहीं है उसका घर उजाड़ है। जिसे कोई सम्बन्धी नहीं है उसकी सभी दिशाए उजाड़ है। मुर्ख व्यक्ति का ह्रदय उजाड़ है। निर्धन व्यक्ति का सब कुछ उजाड़ है।
15.
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम् ।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृध्दस्य तरुणी विषम् ।।१५।।
अर्थ: - जिस अध्यात्मिक सीख का आचरण नहीं किया जाता वह जहर है। जिसका पेट ख़राब है उसके लिए भोजन जहर है। निर्धन व्यक्ति के लिए लोगो का किसी सामाजिक या व्यक्तिगत कार्यक्रम में एकत्र होना जहर है।
16.
त्यजेध्दर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् ।
त्यजेत्क्रोधमुखीं भार्यान्निः स्नेहानबंधवांस्त्यजेत् ।।१६।।
अर्थ: - जिस व्यक्ति के पास धर्म और दया नहीं है उसे दूर करो। जिस गुरु के पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है उसे दूर करो। जिस पत्नी के चेहरे पर हरदम घृणा है उसे दूर करो। जिन रिश्तेदारों के पास प्रेम नहीं उन्हें दूर करो।
17.
अध्वा जरा मनुष्याणां वाजिनां बंधनं जरा ।
अमैथुनं जरा स्त्रीणां वस्त्राणामातपं जरा ।।१७।।
अर्थ: - सतत भ्रमण करना व्यक्ति को बूढ़ा बना देता है। यदि घोड़े को हरदम बांध कर रखते है तो वह बूढा हो जाता है। यदि स्त्री उसके पति के साथ प्रणय नहीं करती हो तो बुढी हो जाती है। धुप में रखने से कपडे पुराने हो जाते है।
18.
कःकालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमौ ।
कस्याहं का च मेशक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ।।१८।।
अर्थ: - इन बातो को बार बार गौर करे: -
- सही समय
- सही मित्र
- सही ठिकाना
- पैसे कमाने के सही साधन
- पैसे खर्चा करने के सही तरीके
- आपके उर्जा स्रोत।
19.
अग्निर्देवो द्विजातीनां मुनीनां हृदि दैवतम् ।
प्रतिमा त्वल्पबुध्दीनां सर्वत्र समदर्शिनाम् ।।१९।।
अर्थ: - द्विज अग्नि में भगवान् देखते है, भक्तो के ह्रदय में परमात्मा का वास होता है, जो अल्प मति के लोग है वो मूर्ति में भगवान् देखते है, लेकिन जो व्यापक दृष्टी रखने वाले लोग है, वो यह जानते है की भगवान सर्व व्यापी है।

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