Sant Kabir Ke Dohe in hindi - प्रसिद्ध कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित
Kabir Ke Dohe: - संत कबीर दस जी ने हमारे साहित्य में एक अलग पहचान छोड़ गए है। खास कर के जब दोहो के बात करते है तो संत कबीर जी का नाम सबसे ऊपर होता है। कबीर जी ने अपने जीवन काल में बहुत सारी चीजे अनुभव किये और उन्हें दोहे के माध्यम से कहा है।यहाँ पर कुछ अच्छे कबीर के दोहे - Kabir Ke Dohe in Hindi अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहें है, यह आपको जरुर पसंद आएगा।
कबीर के दोहे

1.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ: - ज्ञान का महत्वा धर्म से कही ज्यादा ऊपर है इसलिए किसी भी सज्जन के धर्म को किनारे रख कर उसके ज्ञान को महत्वा देना चाहिए। कबीर दस जी उदाहरण लेते हुए कहते है कि - जिस प्रकार मुसीबत में तलवार काम आता है न की उसको ढकने वाला म्यान, उसी प्रकार किसी विकट परिस्थिती में सज्जन का ज्ञान काम आता है, न की उसके जाती या धर्म काम आता है। Kabir Das
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ: - ज्ञान का महत्वा धर्म से कही ज्यादा ऊपर है इसलिए किसी भी सज्जन के धर्म को किनारे रख कर उसके ज्ञान को महत्वा देना चाहिए। कबीर दस जी उदाहरण लेते हुए कहते है कि - जिस प्रकार मुसीबत में तलवार काम आता है न की उसको ढकने वाला म्यान, उसी प्रकार किसी विकट परिस्थिती में सज्जन का ज्ञान काम आता है, न की उसके जाती या धर्म काम आता है। Kabir Das
2.
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
अर्थ: - कबीर दस जी कहते है कि किसी भी कार्य को पूरा होने के लिए एक उचित समय सीमा की आवश्यकता होती है, उससे पहले कुछ भी नहीं हो सकता। इसलिए हमे अपने मन में धैर्य रखना चाहिए और अपने काम को पूरी निष्ठा से करते रहना चाहिए। उदाहरण के तौर पे - यदि माली किसी पेड़ को सौ घड़ा पानी सींचने लगे तब भी उसे ऋतू आने पर ही फल मिलेगा। इसलिए हमे धीरज रखते हुए अपने कार्य को करते रहना चाहिए, समय आने पर फल जरूर मिलेगा।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
अर्थ: - कबीर दस जी कहते है कि किसी भी कार्य को पूरा होने के लिए एक उचित समय सीमा की आवश्यकता होती है, उससे पहले कुछ भी नहीं हो सकता। इसलिए हमे अपने मन में धैर्य रखना चाहिए और अपने काम को पूरी निष्ठा से करते रहना चाहिए। उदाहरण के तौर पे - यदि माली किसी पेड़ को सौ घड़ा पानी सींचने लगे तब भी उसे ऋतू आने पर ही फल मिलेगा। इसलिए हमे धीरज रखते हुए अपने कार्य को करते रहना चाहिए, समय आने पर फल जरूर मिलेगा।
3.
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखीन पड़े, तो पिर घनेरि होय।
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि हमारे पाँव के निचे जो छोटा सा तिनका दबा हुआ रहता है हमे उसकी भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यदि वही छोटा तिनका उड़ कर हमारे आखो में आ गया तो अत्यधिक पीड़ा का कारण बन जाता है। अथार्थ इस दुनिया में हर एक छोटे से छोटे चीज़ भी अगर सही जगह में पहुंच गया तो हमारे लिए काफी संकट पैदा कर सकता है। इसलिए हमे किसी की भी निंदा नहीं करनी चाहिए चाहे वह छोटा हो या बड़ा। Sant Kabir dohe
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखीन पड़े, तो पिर घनेरि होय।
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि हमारे पाँव के निचे जो छोटा सा तिनका दबा हुआ रहता है हमे उसकी भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यदि वही छोटा तिनका उड़ कर हमारे आखो में आ गया तो अत्यधिक पीड़ा का कारण बन जाता है। अथार्थ इस दुनिया में हर एक छोटे से छोटे चीज़ भी अगर सही जगह में पहुंच गया तो हमारे लिए काफी संकट पैदा कर सकता है। इसलिए हमे किसी की भी निंदा नहीं करनी चाहिए चाहे वह छोटा हो या बड़ा। Sant Kabir dohe
4.
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाही जब छूट ।।
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि जब तक तुम जिन्दा हो, ईश्वर का नाम लो उसकी पूजा करो नहीं तो मरने के बाद तुम्हे पछताना पड़ेगा।
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाही जब छूट ।।
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि जब तक तुम जिन्दा हो, ईश्वर का नाम लो उसकी पूजा करो नहीं तो मरने के बाद तुम्हे पछताना पड़ेगा।
5.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।।
अर्थ: - समय का महत्व समझते हुए कबीर जी कहते है कि जो कार्य तुम कल के लिए छोड़ रहे हो उसे आज करो और जो कार्य आज के लिए छोड़ रहे हो उसे अभी करो, कुछ ही वक़्त में तुम्हारा जीवन ख़त्म हो जाएगा तो फिर तुम इतने सरे काम कब करोगे। अथार्त हमे किसी भी काम को तुरंत करना चाहिए उसे बाद के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।।
अर्थ: - समय का महत्व समझते हुए कबीर जी कहते है कि जो कार्य तुम कल के लिए छोड़ रहे हो उसे आज करो और जो कार्य आज के लिए छोड़ रहे हो उसे अभी करो, कुछ ही वक़्त में तुम्हारा जीवन ख़त्म हो जाएगा तो फिर तुम इतने सरे काम कब करोगे। अथार्त हमे किसी भी काम को तुरंत करना चाहिए उसे बाद के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।
6.
साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए ।
मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।।
अर्थ: - संत कबीर जी कहते है कि हे ईश्वर मुझे इतना दो की मै अपने परिजनों का, अपने परिवार का गुजरा कर सकू। मैं भी भर पेट खाना खा सकू और आने वाले सज्जन को भी भर पेट खाना खिला सकू। अथार्त हमे बहुत अधिक धन की लालच नहीं करनी चाहिए, हमे इतने में ही संतोष कर लेने चाहिए जितने में हम अपने और अपने परिजनों को भर पेट खाना खिला सके। Kabir Das ke dohe in hindi
साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए ।
मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।।
अर्थ: - संत कबीर जी कहते है कि हे ईश्वर मुझे इतना दो की मै अपने परिजनों का, अपने परिवार का गुजरा कर सकू। मैं भी भर पेट खाना खा सकू और आने वाले सज्जन को भी भर पेट खाना खिला सकू। अथार्त हमे बहुत अधिक धन की लालच नहीं करनी चाहिए, हमे इतने में ही संतोष कर लेने चाहिए जितने में हम अपने और अपने परिजनों को भर पेट खाना खिला सके। Kabir Das ke dohe in hindi
7.
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।
जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।
अर्थ: - जब हमे कोई दुःख होता है अथार्त कोई परेशानी होती है या चोट लता है तब जाके हम सतर्क होते है और खुद का ख्याल रखते है। कबीर जी कहते है कि यदि हम सुख में अथार्त अच्छे समय में ही सचेत और सतर्क रहने लगे तो दुःख कभी आएगा ही नहीं। अथार्थ हमे सचेत होने के लिए बुरे वक़्त का इंतेज़ार नहीं करना चाहिए।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।
जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।
अर्थ: - जब हमे कोई दुःख होता है अथार्त कोई परेशानी होती है या चोट लता है तब जाके हम सतर्क होते है और खुद का ख्याल रखते है। कबीर जी कहते है कि यदि हम सुख में अथार्त अच्छे समय में ही सचेत और सतर्क रहने लगे तो दुःख कभी आएगा ही नहीं। अथार्थ हमे सचेत होने के लिए बुरे वक़्त का इंतेज़ार नहीं करना चाहिए।
8.
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अती का भला न बरसना, अती कि भलि न धूप ।
अर्थ: - कबीर जी उदाहरण लेते हुए बोलते है कि जिस प्रकार जरुरत से ज्यादा बारिस भी हानिकारक होता है और जरुरत से ज्यादा धुप भी हानिकारक होता है - उसी प्रकार हम सब का न तो बहुत अधिक बोलना उचित रहता है और न ही बहुत अधिक चुप रहना ठीक रहता है। अथार्थ हम जो बोलते है वो बहुत अनमोल है इसलिए हमे सोच समझ कर काम सब्दो में अपने बातो को बोलना चाहिए।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अती का भला न बरसना, अती कि भलि न धूप ।
अर्थ: - कबीर जी उदाहरण लेते हुए बोलते है कि जिस प्रकार जरुरत से ज्यादा बारिस भी हानिकारक होता है और जरुरत से ज्यादा धुप भी हानिकारक होता है - उसी प्रकार हम सब का न तो बहुत अधिक बोलना उचित रहता है और न ही बहुत अधिक चुप रहना ठीक रहता है। अथार्थ हम जो बोलते है वो बहुत अनमोल है इसलिए हमे सोच समझ कर काम सब्दो में अपने बातो को बोलना चाहिए।
9.
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।
अर्थ: - कबीर दस जी कहते है कि जब मै इस दुनिया में लोगो के अंदर बुराई ढूंढ़ने निकला तो कही भी मुझे बुरा व्यक्ति नहीं मिला, फिर जब मैंने अपने अंदर टटोल कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा व्यक्ति इस जग में और कोई नहीं है।अथार्त हमें दूशरो के अंदर बुराई ढूंढ़ने से पहले खुद के अंदर झाक कर देखना चाहिए और तब हमे पता चलेगा कि हमसे ज्यादा बुरा व्यक्ति इस संसार में और कोई नहीं है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।
अर्थ: - कबीर दस जी कहते है कि जब मै इस दुनिया में लोगो के अंदर बुराई ढूंढ़ने निकला तो कही भी मुझे बुरा व्यक्ति नहीं मिला, फिर जब मैंने अपने अंदर टटोल कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा व्यक्ति इस जग में और कोई नहीं है।अथार्त हमें दूशरो के अंदर बुराई ढूंढ़ने से पहले खुद के अंदर झाक कर देखना चाहिए और तब हमे पता चलेगा कि हमसे ज्यादा बुरा व्यक्ति इस संसार में और कोई नहीं है।
कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित
10.
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गही रहै, थोथी देई उड़ाय ।
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि हमे ऐसे सज्जन कि आवश्कता है जिसका स्वभाव अनाज को साफ़ करने वाला सुप की तरह हो, अनाज को बचते हुए वह वहा से बाकि सारी घास फुस अथवा और गंदगीओ हो हटा दे। अथार्त सज्जन को ऐसा होना चाहिए जिसे सही गलत का और अच्छे बुरे का फर्क करने आता हो , जो सबकी मदद करे और जो अच्छाई को बचते हुए सबसे बुराई को निकल दे। Kabir ke dohe
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गही रहै, थोथी देई उड़ाय ।
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि हमे ऐसे सज्जन कि आवश्कता है जिसका स्वभाव अनाज को साफ़ करने वाला सुप की तरह हो, अनाज को बचते हुए वह वहा से बाकि सारी घास फुस अथवा और गंदगीओ हो हटा दे। अथार्त सज्जन को ऐसा होना चाहिए जिसे सही गलत का और अच्छे बुरे का फर्क करने आता हो , जो सबकी मदद करे और जो अच्छाई को बचते हुए सबसे बुराई को निकल दे। Kabir ke dohe
11.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।
अर्थ: - कबीर जी सच्चे ज्ञानी की परिभासा देते हुए कहते है की इस दुनिया में न जाने कितने लोग आये और मोटी मोटी किताबे पढ़ कर चले गए पर कोई भी सच्चा ज्ञानी नहीं बन सका। सच्चा ज्ञानी वही है, जो प्रेम का ढाई अक्छर पढ़ा हो - अथार्त जो प्रेम का वास्तविक रूप पहचानता हो। इस जगत में बहुत से ऐसे लोग है जो बड़ी बड़ी किताबे पढ़ लेते है फिर भी वे लोग प्रेम का सही अर्थ नहीं समझ पते है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।
अर्थ: - कबीर जी सच्चे ज्ञानी की परिभासा देते हुए कहते है की इस दुनिया में न जाने कितने लोग आये और मोटी मोटी किताबे पढ़ कर चले गए पर कोई भी सच्चा ज्ञानी नहीं बन सका। सच्चा ज्ञानी वही है, जो प्रेम का ढाई अक्छर पढ़ा हो - अथार्त जो प्रेम का वास्तविक रूप पहचानता हो। इस जगत में बहुत से ऐसे लोग है जो बड़ी बड़ी किताबे पढ़ लेते है फिर भी वे लोग प्रेम का सही अर्थ नहीं समझ पते है।
12.
पतिबरता मैली भली, गले कांच की पोत ।
सब सखियन मे यो दीपै, ज्यो रवि शीश की जोत ।।
अर्थ: - संत कबीर जी कहते है कि यदि कोई स्त्री पति व्रता है - तो फिर चाहे उसके गले में सुहाग के नाम पर सिर्फ कच का एक माला हो या वो तन से मैली भी है, फिर भी वो अपने सभी सखी सहेलियो में सूर्य के किरण सामान चमकति है। अथार्त जो स्त्री पति व्रता है उसे सुन्दर दिखने के लिए किसी भी गहने या सेज सजावट की आवश्कता नहीं है।
पतिबरता मैली भली, गले कांच की पोत ।
सब सखियन मे यो दीपै, ज्यो रवि शीश की जोत ।।
अर्थ: - संत कबीर जी कहते है कि यदि कोई स्त्री पति व्रता है - तो फिर चाहे उसके गले में सुहाग के नाम पर सिर्फ कच का एक माला हो या वो तन से मैली भी है, फिर भी वो अपने सभी सखी सहेलियो में सूर्य के किरण सामान चमकति है। अथार्त जो स्त्री पति व्रता है उसे सुन्दर दिखने के लिए किसी भी गहने या सेज सजावट की आवश्कता नहीं है।
13.
कबीर हमारा कोई नहीं, हम काहू के नाहिं ।
पारै पहुंचे नाव ज्यौ, मीलके बिछुरी जाह ।।
अर्थ: - संत कबीर जी इस दुनिया को एक नाव बताते हुए कहते है कि - इस संसार रूपी नाव में हमारा कोई नहीं है और न ही हम किसी के है। ज्यो ही नाव किनारे पर पहुंचेगी हम सब बिछुड़ जायेगे। अथार्त इस संसार रूपी नाव में हमारा अपना कोई भी नहीं है और न ही हम किसी के अपने है, कोई भी इस संसार में सदा एक साथ नहीं रह सकता एक न एक दिन सबको अलग अलग होना ही पड़ता है। (dohe in hindi)
कबीर हमारा कोई नहीं, हम काहू के नाहिं ।
पारै पहुंचे नाव ज्यौ, मीलके बिछुरी जाह ।।
अर्थ: - संत कबीर जी इस दुनिया को एक नाव बताते हुए कहते है कि - इस संसार रूपी नाव में हमारा कोई नहीं है और न ही हम किसी के है। ज्यो ही नाव किनारे पर पहुंचेगी हम सब बिछुड़ जायेगे। अथार्त इस संसार रूपी नाव में हमारा अपना कोई भी नहीं है और न ही हम किसी के अपने है, कोई भी इस संसार में सदा एक साथ नहीं रह सकता एक न एक दिन सबको अलग अलग होना ही पड़ता है। (dohe in hindi)
Kabir ke dohe on demand
निम्न कुछ कबीर के दोहे आप लोगो के अनुरोध पर लाया गया है। यदि आप और कुछ पढ़ना पसंद करेंगे तो निचे कमेंट करके हमे बताये, हम उसे आपके लिए जरूर उपलब्ध करायेगे। 15.
माटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाया ।
जिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाया ।।
अर्थ: - लोग पूजा पाठ में आडंबर और दिखावा करते है, मसलन साप की पूजा करने के लिए वे माटी का साप बनाते है। लेकिन वास्तव में जब वही साप उसके घर चला आता है तो उसे लाठी से पिट पिट कर मार दिया जाता है। अथार्थ कबीर जी पूजा की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए संदेश देते है कि दिखावे के पूजे से कोई लाभ नहीं। दिखावे के पूजे से मन को झूठी तसली दी जा सकती है, ईश्वर की प्राप्ति नहीं की जा सकती।
माटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाया ।
जिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाया ।।
अर्थ: - लोग पूजा पाठ में आडंबर और दिखावा करते है, मसलन साप की पूजा करने के लिए वे माटी का साप बनाते है। लेकिन वास्तव में जब वही साप उसके घर चला आता है तो उसे लाठी से पिट पिट कर मार दिया जाता है। अथार्थ कबीर जी पूजा की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए संदेश देते है कि दिखावे के पूजे से कोई लाभ नहीं। दिखावे के पूजे से मन को झूठी तसली दी जा सकती है, ईश्वर की प्राप्ति नहीं की जा सकती।

16.
मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।
नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।।
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि लोग शरीर का मैल अच्छे से मल मल कर साफ़ करते है किन्तु मन का मैल कभी साफ़ नहीं करते। वे गंगा और गोमती जैसे नदी में नाहा कर खुद को पवित्र मानते है परन्तु वे मुर्ख के मुर्ख ही रहते है।
अथार्थ जब तक कोई व्यक्ति अपने मन का मेल साफ़ नहीं करता तब तक वो कभी एक सज्जन नहीं बन सकता फिर चाहे वो कितना ही गंगा और गोमती जैसे पवित्र नदी में नाहा ले वो मुर्ख के मुर्ख ही रहेगा।
मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।
नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।।
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि लोग शरीर का मैल अच्छे से मल मल कर साफ़ करते है किन्तु मन का मैल कभी साफ़ नहीं करते। वे गंगा और गोमती जैसे नदी में नाहा कर खुद को पवित्र मानते है परन्तु वे मुर्ख के मुर्ख ही रहते है।
अथार्थ जब तक कोई व्यक्ति अपने मन का मेल साफ़ नहीं करता तब तक वो कभी एक सज्जन नहीं बन सकता फिर चाहे वो कितना ही गंगा और गोमती जैसे पवित्र नदी में नाहा ले वो मुर्ख के मुर्ख ही रहेगा।

17.
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होए ।।
अर्थ: - कबीर जी हमारे मुख से निकलने वाले बातो को अत्यधिक महत्व देते हुए कहते है कि हमे ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिसे सुन कर दूसरो को भी प्रसंता हो और खुद को भी प्रसन्ता महसुस हो। हमें ऐसी बाते करनी चहिए जिससे किसी को बुरा न लगे और उनके मन को ठेस न पहुंचे।
अथार्थ मीठे वचन औषधि के समान है। तलवार से लगे चोट देर - सवेर भर जाता है किन्तु कटु वचन बोलने से हुआ घाव कभी नहीं भरता। मीठे वचन बोलने से बिगड़े काम भी बन जाता है।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होए ।।
अर्थ: - कबीर जी हमारे मुख से निकलने वाले बातो को अत्यधिक महत्व देते हुए कहते है कि हमे ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिसे सुन कर दूसरो को भी प्रसंता हो और खुद को भी प्रसन्ता महसुस हो। हमें ऐसी बाते करनी चहिए जिससे किसी को बुरा न लगे और उनके मन को ठेस न पहुंचे।
अथार्थ मीठे वचन औषधि के समान है। तलवार से लगे चोट देर - सवेर भर जाता है किन्तु कटु वचन बोलने से हुआ घाव कभी नहीं भरता। मीठे वचन बोलने से बिगड़े काम भी बन जाता है।

18.
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थ: - जिस प्रकार हम अपने आँगन में छाया करने के लिए पेड़ लगाते हैं उसी प्रकार हमें उन लोगो को अपने सबसे नजीक रखना चाहिए जो लोग हमारे बुराई (निंदा) करते है। क्योंकि वे लोग बिना साबुन और पानी के अथार्थ हमसे कुछ भी लिए बगैर हमारी कमिया को चुन चुन कर निकालते है ताकि हम उन सारी कमियों को दूर कर सके।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थ: - जिस प्रकार हम अपने आँगन में छाया करने के लिए पेड़ लगाते हैं उसी प्रकार हमें उन लोगो को अपने सबसे नजीक रखना चाहिए जो लोग हमारे बुराई (निंदा) करते है। क्योंकि वे लोग बिना साबुन और पानी के अथार्थ हमसे कुछ भी लिए बगैर हमारी कमिया को चुन चुन कर निकालते है ताकि हम उन सारी कमियों को दूर कर सके।
19.
कबीर मंदिर लाख का, जडियां हीरे लालि ।
दिवस चारि का पेषणा, बिनस जाएगा कालि ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि हमारा शरीर लाख (कीमती वश्तु या पत्थर ) से बना एक मंदिर के समान है, जिसको हम सारा जीवन हीरे और लाली जैसे कीमती वश्तुओं से सजाने में लगे रहते है। किन्तु हम ये भूल जाते है कि हमारा जीवन सिर्फ चार दिन का खिलौना, उसके बाद यह शरीर नस्ट हो जाएगा।
कबीर मंदिर लाख का, जडियां हीरे लालि ।
दिवस चारि का पेषणा, बिनस जाएगा कालि ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि हमारा शरीर लाख (कीमती वश्तु या पत्थर ) से बना एक मंदिर के समान है, जिसको हम सारा जीवन हीरे और लाली जैसे कीमती वश्तुओं से सजाने में लगे रहते है। किन्तु हम ये भूल जाते है कि हमारा जीवन सिर्फ चार दिन का खिलौना, उसके बाद यह शरीर नस्ट हो जाएगा।
20.
एकही बार परखिये, ना वा बारम्बार ।
बालू तो हू किरकिरी, जो छानै सौ बार॥
अर्थ: - कबीर दस जी कहते है कि किसी व्यक्ति के स्वभाव को एक ही बार में परख लिया जाता है। जिस प्रकार बालू को सौ बार भी छानने से उसकी किरकिरी ( अत्यधिक छोटा कण ) मिल ही जाता है, उसी प्रकार किसी भी व्यक्ति को बार बार परखने से उसका स्वभाव नहीं बदल जाता। इसलिए संत कबीर जी कहते है किसी के स्वभाव को एक ही बार में परख लेना चाहिए। उससे बार बार धोखा खाने की अवस्य्क्ता नहीं है। Sant Kabir ke dohe
एकही बार परखिये, ना वा बारम्बार ।
बालू तो हू किरकिरी, जो छानै सौ बार॥
अर्थ: - कबीर दस जी कहते है कि किसी व्यक्ति के स्वभाव को एक ही बार में परख लिया जाता है। जिस प्रकार बालू को सौ बार भी छानने से उसकी किरकिरी ( अत्यधिक छोटा कण ) मिल ही जाता है, उसी प्रकार किसी भी व्यक्ति को बार बार परखने से उसका स्वभाव नहीं बदल जाता। इसलिए संत कबीर जी कहते है किसी के स्वभाव को एक ही बार में परख लेना चाहिए। उससे बार बार धोखा खाने की अवस्य्क्ता नहीं है। Sant Kabir ke dohe
21.
हू तन तो सब बन भया, करम भए कुहांडि ।
आप आप कूँ काटि है, कहै कबीर बिचारि॥
अर्थ: - कबीर दस जी यह सोच विचार कर कहते है कि हम सबका शरीर एक जंगल के जैसा है और उसमे हमारा कर्म कुल्हाड़ी जैसा - और इस कुल्हाड़ी से हम सब खुद को ही काटे जा रहे है। अथार्थ हम अपने बुरे कर्मो के कारण हमेसा खुद को ही नुकशान पहुंचते रहते है इसलिए हमे हमेसा अच्छे कर्म करना चाहिए।
हू तन तो सब बन भया, करम भए कुहांडि ।
आप आप कूँ काटि है, कहै कबीर बिचारि॥
अर्थ: - कबीर दस जी यह सोच विचार कर कहते है कि हम सबका शरीर एक जंगल के जैसा है और उसमे हमारा कर्म कुल्हाड़ी जैसा - और इस कुल्हाड़ी से हम सब खुद को ही काटे जा रहे है। अथार्थ हम अपने बुरे कर्मो के कारण हमेसा खुद को ही नुकशान पहुंचते रहते है इसलिए हमे हमेसा अच्छे कर्म करना चाहिए।
22.
तेरा संगी कोई नहीं, सब स्वारथ बंधी लोई ।
मन परतीति न उपजै, जिव बेसास न होई ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि तुम्हारा साथ देने के लिए इस दुनिया में कोई भी नहीं है। सब अपने स्वार्थ के कारण तुम्हारे निकट है। और जब तक तुम्हे इस सच्चाई का पता नहीं चलता तब तक तुम अपने आप पर, अपने आत्मा पर, विश्वास नहीं कर सकते। अथार्थ मनुष्य इस दुनिया के वास्तविकता से, छल - कपट से अनजान रहता है और जिस दिन उसे इस बात का ज्ञात हो जाता है उसके बाद से वह अपने अंतरात्मा की ओर विश्वास करने लगता है।
तेरा संगी कोई नहीं, सब स्वारथ बंधी लोई ।
मन परतीति न उपजै, जिव बेसास न होई ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि तुम्हारा साथ देने के लिए इस दुनिया में कोई भी नहीं है। सब अपने स्वार्थ के कारण तुम्हारे निकट है। और जब तक तुम्हे इस सच्चाई का पता नहीं चलता तब तक तुम अपने आप पर, अपने आत्मा पर, विश्वास नहीं कर सकते। अथार्थ मनुष्य इस दुनिया के वास्तविकता से, छल - कपट से अनजान रहता है और जिस दिन उसे इस बात का ज्ञात हो जाता है उसके बाद से वह अपने अंतरात्मा की ओर विश्वास करने लगता है।
23.
कबीर नाव जर्जरि, कूड़े खेवनहार ।
हलके हलके तीरी गए, बूड़े तीनी सर भार ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि इस संसार रूपी समुन्द्र को पार करने के लिए हमारा ये तन (शरीर ) और मन एक नाव के जैसा है। और इसका मन रुपि नाव पहले हे राग-रंग, शत्रुता और धन जैसी चीज़ो से जर्जर हो चुकी है और यह डूबता ही जा रहा है। और दूसरी तरफ तन रूपी नाव विषय वासनाओ और अंहकार जैसे गलत चीज़ो से बोझ हो चूका है। ऐसे नाव संसार रूपी समुन्द्र को पार कर ही नहीं सकता। इस संसार रूपी समुन्द्र को वही लोग पार कर सकते है जो इन सब चीज़ो को त्याग कर खुद को हल्का कर लिया हो।
कबीर नाव जर्जरि, कूड़े खेवनहार ।
हलके हलके तीरी गए, बूड़े तीनी सर भार ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि इस संसार रूपी समुन्द्र को पार करने के लिए हमारा ये तन (शरीर ) और मन एक नाव के जैसा है। और इसका मन रुपि नाव पहले हे राग-रंग, शत्रुता और धन जैसी चीज़ो से जर्जर हो चुकी है और यह डूबता ही जा रहा है। और दूसरी तरफ तन रूपी नाव विषय वासनाओ और अंहकार जैसे गलत चीज़ो से बोझ हो चूका है। ऐसे नाव संसार रूपी समुन्द्र को पार कर ही नहीं सकता। इस संसार रूपी समुन्द्र को वही लोग पार कर सकते है जो इन सब चीज़ो को त्याग कर खुद को हल्का कर लिया हो।
24.
मैं मैं मेरी जीनी करै, मेरी सूल बीनास ।
मेरी पग का पैषणा, मेरी गल कि पास ॥
अर्थ: - कबीर जी लालच और अंहकार को गलत बताते हुए कहते है कि - हर जगह मैं-मैं करना या सभी चीज़ो को अपना समझना ये सब विनाष के जड़ है। लालच और अंहकार पैरो के लिए बेडी है, और गले के लिए फांसी के समान है। अथार्थ हमें लालच और अहंकार से सदा दूर रहना चाहिए। यदि हम लालच कर रहे है तो - अपने ही पैरो में कुल्हाड़ी मर रहे है।
मैं मैं मेरी जीनी करै, मेरी सूल बीनास ।
मेरी पग का पैषणा, मेरी गल कि पास ॥
अर्थ: - कबीर जी लालच और अंहकार को गलत बताते हुए कहते है कि - हर जगह मैं-मैं करना या सभी चीज़ो को अपना समझना ये सब विनाष के जड़ है। लालच और अंहकार पैरो के लिए बेडी है, और गले के लिए फांसी के समान है। अथार्थ हमें लालच और अहंकार से सदा दूर रहना चाहिए। यदि हम लालच कर रहे है तो - अपने ही पैरो में कुल्हाड़ी मर रहे है।
25.
मन जाणे सब बात, जांणत ही औगुन करै ।
काहे की कुसलात, कर दीपक कूंवै पड़े ॥
अर्थ: - हमारा मन सब कुछ जानता है , सही गलत का फर्क भी जानता है लेकिन फिर भी ये गलत कार्य करता है। कबीर जी कहते है ये ठीक उससे प्रकार है जैसे की कोई हाथ में दीपक पकड़ कर भी कुएँ में गिर जाए। ऐसा व्यक्ति कैसे कुशल रह सकता है।
मन जाणे सब बात, जांणत ही औगुन करै ।
काहे की कुसलात, कर दीपक कूंवै पड़े ॥
अर्थ: - हमारा मन सब कुछ जानता है , सही गलत का फर्क भी जानता है लेकिन फिर भी ये गलत कार्य करता है। कबीर जी कहते है ये ठीक उससे प्रकार है जैसे की कोई हाथ में दीपक पकड़ कर भी कुएँ में गिर जाए। ऐसा व्यक्ति कैसे कुशल रह सकता है।
26.
हिरदा भीतर आरसी, मुख देखा नहीं जाई ।
मुख तो तौ परि देखिए, जे मन की दुविधा जाई ॥
अर्थ: - संत कबीर जी कहते है कि मनुष्य के ह्रदय में ही आइना होता है लेकिन वह खुद को या वास्तविकता को नहीं देख पता है। वह खुद को या वास्तविकता को तभी देख पता है जब उसके मन की दुविधा अथार्थ संकट ख़त्म हो जाती है। अथार्थ चिंता अथवा मन का कास्ट ऐसा चीज़ है जो मनुष्य को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है। इतना की व्यक्ति खुद की पहचान भूलने लगता है। इसलिए चिंता से हमे बच कर रहना चाहिए।
हिरदा भीतर आरसी, मुख देखा नहीं जाई ।
मुख तो तौ परि देखिए, जे मन की दुविधा जाई ॥
अर्थ: - संत कबीर जी कहते है कि मनुष्य के ह्रदय में ही आइना होता है लेकिन वह खुद को या वास्तविकता को नहीं देख पता है। वह खुद को या वास्तविकता को तभी देख पता है जब उसके मन की दुविधा अथार्थ संकट ख़त्म हो जाती है। अथार्थ चिंता अथवा मन का कास्ट ऐसा चीज़ है जो मनुष्य को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है। इतना की व्यक्ति खुद की पहचान भूलने लगता है। इसलिए चिंता से हमे बच कर रहना चाहिए।
27.
करता था तो क्यूं रहय, जब करि क्यूं पछिताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि किसी कार्य को सुरु करने से पहले उसके परिणाम के बारे में अच्छे से सोच समझ लेना चाहिए, और यदि बिना सोचे समझे कार्य कर लिए तो फिर क्यों पछता रहे है। ये ठीक उसी प्रकार है की आप बिना सोचे समझे बाबुल का पेड़ लगाए है और आम खाने की प्रतीक्षा कर रहे है। अथार्थ हमें कोई भी काम सोच समझ कर करना चाहिए ताकि बाद में हमे पछताना न पड़े। Kabir Das ke dohe
करता था तो क्यूं रहय, जब करि क्यूं पछिताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि किसी कार्य को सुरु करने से पहले उसके परिणाम के बारे में अच्छे से सोच समझ लेना चाहिए, और यदि बिना सोचे समझे कार्य कर लिए तो फिर क्यों पछता रहे है। ये ठीक उसी प्रकार है की आप बिना सोचे समझे बाबुल का पेड़ लगाए है और आम खाने की प्रतीक्षा कर रहे है। अथार्थ हमें कोई भी काम सोच समझ कर करना चाहिए ताकि बाद में हमे पछताना न पड़े। Kabir Das ke dohe
28.
नमनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि हमारे मन में बहुत सारी इक्छाये उत्पन होती रहती है और उन सभी इक्छाओ को पूरा करना हमारे बस की बात नहीं है है इसलिए उसे छोड़ देना चाहिए और सिर्फ उसी में धयान देना चाहिए जिसे पूरा करना हमारे बस में हो। हमारी हर इक्छा को पुरी करना उसी प्रकार है जैसे पानी से घी निकलना अगर ऐसा होता तो कोई भी सुखी (रूखी ) रोटी क्यों खता।
नमनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ॥
अर्थ: - कबीर जी कहते है कि हमारे मन में बहुत सारी इक्छाये उत्पन होती रहती है और उन सभी इक्छाओ को पूरा करना हमारे बस की बात नहीं है है इसलिए उसे छोड़ देना चाहिए और सिर्फ उसी में धयान देना चाहिए जिसे पूरा करना हमारे बस में हो। हमारी हर इक्छा को पुरी करना उसी प्रकार है जैसे पानी से घी निकलना अगर ऐसा होता तो कोई भी सुखी (रूखी ) रोटी क्यों खता।
29.
माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।
आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥
अर्थ: - संत कबीर जी का ऐसा मानना है और कहना है कि मनुष्य का शरीर बार बार मरता है लेकिन उसका मन, आशा और तृष्णा कभी नहीं मरता। ये सब सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवाहित होती है
माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।
आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥
अर्थ: - संत कबीर जी का ऐसा मानना है और कहना है कि मनुष्य का शरीर बार बार मरता है लेकिन उसका मन, आशा और तृष्णा कभी नहीं मरता। ये सब सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवाहित होती है

30.
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमान,
आपस में दोउ लड़ी मुए, मरम न कोउ जान।
अर्थ: - ईश्वर एक है - यह सीख देते हुए कबीर जी कहते है कि - है हिन्दू कहता है मेरा ईश्वर राम है और मुस्लिम कहता है मेरा ईश्वर अल्लाह है - इसी बात पर दोनों धर्म के लोग लड़ कर मर जाते है उसके बाद भी कोई सच नहीं जान पता है कि ईश्वर एक है।
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमान,
आपस में दोउ लड़ी मुए, मरम न कोउ जान।
अर्थ: - ईश्वर एक है - यह सीख देते हुए कबीर जी कहते है कि - है हिन्दू कहता है मेरा ईश्वर राम है और मुस्लिम कहता है मेरा ईश्वर अल्लाह है - इसी बात पर दोनों धर्म के लोग लड़ कर मर जाते है उसके बाद भी कोई सच नहीं जान पता है कि ईश्वर एक है।
31.
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
अर्थ: - कबीर जी एक अच्छे और सच्चे व्यक्ति बनने की सलाह देते हुए कहते है कि न किसी से अत्यधिक दोस्ती रखनी चाहिए और न ही अत्यधिक बैर। सबको निस्पक्छ भाव से देखना चाहिए और किसी का भी बुरा नहीं करना चाहिए।
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
अर्थ: - कबीर जी एक अच्छे और सच्चे व्यक्ति बनने की सलाह देते हुए कहते है कि न किसी से अत्यधिक दोस्ती रखनी चाहिए और न ही अत्यधिक बैर। सबको निस्पक्छ भाव से देखना चाहिए और किसी का भी बुरा नहीं करना चाहिए।
32.
कबीर यह तनु जात है, सकै तो लेहू बहोरि ।
नंगे हाथूं ते गए, जिनके लाख करोडि॥
अर्थ: - कबीर जी हमारे शरीर की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहते है कि हमारा शरीर बहुत कीमती है और इसका देखभाल नहीं करने से यह जल्द ही नस्ट हो जाएगा। अथार्थ जीवन में सिर्फ धन सम्पत्ति जोड़ने में न लगे रहो - अपने शरीर पर भी धयान दो। क्योकि जिसके पास लाखो कडोलो की सम्पत्ति थी वो भी खली हाथ ही गए है।
कबीर यह तनु जात है, सकै तो लेहू बहोरि ।
नंगे हाथूं ते गए, जिनके लाख करोडि॥
अर्थ: - कबीर जी हमारे शरीर की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहते है कि हमारा शरीर बहुत कीमती है और इसका देखभाल नहीं करने से यह जल्द ही नस्ट हो जाएगा। अथार्थ जीवन में सिर्फ धन सम्पत्ति जोड़ने में न लगे रहो - अपने शरीर पर भी धयान दो। क्योकि जिसके पास लाखो कडोलो की सम्पत्ति थी वो भी खली हाथ ही गए है।
59 टिप्पणियाँ
Jab gudh ko gaka melae to lakh
जवाब देंहटाएंkabirji ke dohe-bahot bahetarin sampadan.
हटाएंHaa bhai muje kabir das ke dohe or चाहिए।
हटाएंकबीर, राम नाम से खिज मरैं, कुष्टि हो गल जाय।
हटाएंशुकर होकर जन्म ले, नाक डूबता खाय।।
Kabir Prakat Diwas 24 June
दिल्ली में प्रदुषण का कारन सिर्फ आपको एक पराली ही दिखा किसान ही सबको कमजोर क्यों दीखते हैं, रोज हजारो लाखो प्रदुषण करने वाली नई गाड़ी बिक रही हैं चल रही हैं हजारो फक्ट्री आसपास पुरे साय विषैले गैस आपको नहीं दीखता, दिखता हैं तो मजबूर कमजोर किसान
जवाब देंहटाएंSab galt or sai dono tarike se ye parthvi chal rahi hai logo ko kese samjhau main
हटाएंCorrect
हटाएंVery very thanks.........ki is Google par sara knowledge hai......thanks......
हटाएंथैंक्यू
जवाब देंहटाएंkabirdas ke dohe bahut achhe lage
जवाब देंहटाएंek dam maste post bhai apne likhi hai
जवाब देंहटाएंTop kabir ke dohe hai isse good aur kuchh nhi
जवाब देंहटाएंअद्भुत ।।
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंApne Kabir ke dohe like kar Meri study time ko phir se jaga Diya thanks
जवाब देंहटाएंVERY GOOD COLLECTION
जवाब देंहटाएं*Nice*
हटाएंRight
जवाब देंहटाएंकबीर के दोहे पठन करके बहुत ही अच्छा लगा। प्रेरणादायक दोहे है.........
जवाब देंहटाएंNice kabir ji ke dohe
जवाब देंहटाएंNice collection
जवाब देंहटाएंhttps://hindisaahityas.blogspot.com/2018/10/sant-kabir-das-103-sant-kabir-ke-dohe.html
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा कबीर जी दोहा पढकर
जवाब देंहटाएंCorrect
जवाब देंहटाएंLespa jala andksb èspanol benēî
हटाएंवो दोहे कहा है ।।माटी का नाग बनाके पूजे लोग लगाया जिंदा सांप जब घर में निकले दे लाठी धमकाया
जवाब देंहटाएंYES
हटाएंसैया निकस गये माई ना लडी हो रामा,,ये भी तो कबीर दास जी का दोहा है
हटाएंbahot khub
जवाब देंहटाएंVery good
हटाएंVery beautiful
जवाब देंहटाएंVery beautiful
जवाब देंहटाएंमेरा जीवन बदल गया
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संग्रह ।
जवाब देंहटाएंbahut achchha
जवाब देंहटाएंSuber awesome, maja aa gaya padhke
जवाब देंहटाएंHii
जवाब देंहटाएंHii Hirday
हटाएंअच्छा संग्रह है। बहुत अच्छी मेहनत की है। It is hellping me to further share/educate many. Thanks a ton, Regards, Yogesh Bhanot
जवाब देंहटाएंSuper bichar
जवाब देंहटाएंBahut bahut sundar
जवाब देंहटाएंVery nice aapne bhut achha likha hai
जवाब देंहटाएंVery nice post.
जवाब देंहटाएंबहुत सूंदर पक्तियां सत्य मार्ग पर चलने के लिए केवल सत्य मार्ग ही है।
जवाब देंहटाएंआपके लिखे हुए इस दोहे में अगर मै टिप्पणी करू तो ये मेंरे बस की बात नहीं है गुरुदेव आप बहुत बहुत बहुत महान हैं आपकी व्याख्या नहीं की जा सकती आप तो अनंत हैं
जवाब देंहटाएंKabir is god
जवाब देंहटाएंyeh dohe mere jivan boht kaam aate h aur meri vaani me boht sudhaar aaya h
जवाब देंहटाएंI LIKE IT
जवाब देंहटाएंThanks a lot bro 😊
जवाब देंहटाएंबहुत खूब... सराहनीय
जवाब देंहटाएंबंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो सत साहेब 🙏🙏🙇🙇🙇🙇🙇🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंबंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो 🙇🙇🙏🙏🙏🙇🙇🙏🙏🙏🙇🙇🙏🙏🙇🙇🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सरल शब्दों में जिंदगी के सार को समझा दिया गया है।
जवाब देंहटाएंधन्य हो।
very nice kabir ke dohe
जवाब देंहटाएंकबीर के dohe को बहुत ही सटीक तरीके से समझाया गया है| मैं आपके इस प्रयास पर आपको बधाई देता हूं| keep writing.
जवाब देंहटाएंमाटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाया ।
जवाब देंहटाएंजिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाया ।।
Super🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएंBahut acchi post hai
जवाब देंहटाएंhelo friends, I am daily your website and your website post सुंदरकांड पाठ हिंदी में pdf is very nice.
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